परेशान ये मन आज
तन्हा सा जैसे पड़ गया हूं मैं
साथ कोई खड़ा ही नहीं
क्यों, क्या इतना बुरा हूं मैं
वक्त जैसे गुजर रहा है
पर एक ही जगह रुका हूं मैं
तरक्की का पता नहीं
पर खुद ही खुद में धंस सा गया हूं मैं
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मुद्दत बाद मिली वो इक दिन
पूछा मैंने कि कैसी हो??
रो पड़ी वो दिखा अपने हाथों पर मेहंदी....
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