तसल्ली के लिए एक बार कह दो झूठ ही कह दो
ये कह दो हम तुम्हारे है हर इक सूरत तुम्हारे हैं
दिले नाशाद को शायद करार आ जाये थोड़ा सा
हमे भी फिर से तुम पे एतबार आ जाये थोड़ा सा
मुझे मालूम है सब फ़ैसले बस तेरे हक़ में हैं
तुम्हारे फैसलों से हम भला इंकार क्या करते
मेरे रुख़सार पे शायद तुम्हारा नाम लिखते हैं
सुलगती ज़िन्दगी में चंद लम्हो के थे याराने
हमें कुछ भी नहीं मालूम ओर ये भी नहीं मालूम
तुम्हारा तज़किरा गैरो की महफ़िल में भी होता है
चरागे आरज़ू इक रोज़ को तो बुझ ही जाना है
मगर फिर भी मैं इंसां हूं मुझे तकलीफ़ होती है
ये कह दो हम तुम्हारे हैं तो हर सूरत तुम्हारे हैं
हमें तस्कीन सी हो जाय थोड़ा सब्र हो जाये
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