जिंदगी
पता नहीं जिंदगी इतनी तकलीफ क्यों देती है?
क्या जिंदगी को ऐसा करना अच्छा लगता है?
क्यों लोग इसके गम से रोते रहते हैं?
क्यों यह हमेशा उन पर जुल्म करते रहती है?
क्या जिंदगी ने कभी देखा ना है जीकर?
जो करती है इतनी जुल्में होकर बेखबर!
काश! कोई आकर,
मेरी जिंदगी थाम लेता
जिंदगी भर मैं उनके,
अपनी हर खुशियां कर देता
यू तो कुछ खास दिया नहीं है जिंदगी ने
चंद खुशियां जो मिली है,
उसको उनके नाम कर देता!
बहुत मुद्दतों से मिली है
एक खुशी जिंदगी में,
हरगिज़ नहीं मैं चाहता
खोना उसे जीवन में!
हमेशा कोसता था जिंदगी को लेकिन
आज वही जिंदगी बनी है,
ना जाने क्या किया है उसने
जो बन गई जीवनसंगिनी है!
विवेक नाथ साही
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