चाहे कोई जैसा भी हमसफर हो सदियो से,
रास्ता बदलने में देर कितनी लगती है!
ये तो वक़्त के बस में है कि कितनी मोहल्लत दे,
वरना वक़्त ढलने में क्या देर लगती है।
लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में,
किसकी बनी है आलमे-नापाइदार में।
कह दो इन हसरतों को कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिले-दागदार में।
उम्रे-दराज माँगकर लाये थे चार -दिन,
दो आरजू में कट गये, दो इन्तिजार में।
कितना है बदनसीब 'जफर' दफ्न के लिये,
दो गज जमीं भी न मिली कू-ए-यार में।
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