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बस शब्दो को उकेरती हूँ
स्वरा
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शब्द किसीकी जागीर नही होते वे पिघल जाते हैं ज़ेहन के लावे में ये जो कतरा कतरा जिनगी है न इसे अक़्सर पी जाते हैं हम बेमौसम बारिशों में पता है क्यों? क्योंकि प्यास अधूरी नही रहती ज़िन्दगी चलती रहती है एक नमी लिए ये जो हम कहते हैं न की शब्द गुम हो जाते हैं तो सुनो यह गुम नही होते वे ठहर माया करते हैं हम सबकी आंखों में कभी मेरे तो क़भी आपकी आंखों मर सुनो न देव शब्द किसीकी जागीर नही होते हैं ©स्वरा
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