Unsplash चलो, क्यों न एक महफ़िल सजाई जाए,
जितनी बिछड़ी हैं, सबकी महबूबा बुलाई जाए।
बस हिज्र की बातें मत करना उनसे,
अब क्यों ही किसकी औरत रुलाई जाए।
और संभालकर, वो देखेगी तुम जताते कितना हो,
फिर बात-बात पर पूछेगी, अब कमाते कितना हो।
फिर कहेगी, "अकेले हो या कोई आया है साथ में?"
"या अब तक नहीं दिया यह हाथ किसी के हाथ में?"
फिर कहेगी, "यह वही जैकेट है न, जो मैंने पहनी थी जकड़ कर?"
फिर देखना, वो रोने लगेगी तुम्हारा हाथ पकड़ कर।
तो बच्चे रहना, यही फंसता हर इंसान है,
और छुपा लेना वो कलाई, जिस पर चाकू का निशान है।
फिर अपनी बातों से उसके ज़ख्म खरोच देना,
निकालना अपना रुमाल और उसके आँसू पोंछ देना।
फिर देखना, वो ढोंग करेगी हँसने का,
और यही पहला निशान होगा, मेरी जान, तेरे फंसने का।
फिर धीमी आवाज़ में पूछ लेना, "कैसा तेरा नया यार है?"
"कुछ करता-वर्ता भी है या बस प्यार है?" 🩶
©Mr X
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here