हे रघुनंदन! दशरथनन्दन! मैं वन्दन तेरा आज करूँ
तुम चाहो तो दर दर भटकूँ मैं, तुम चाहो तो मैं राज करूँ
नहीं चाहिए रघुवर मुझको, ये ऐसोआराम जगत के सब
न किसी के आगे हाथ खुले, ऐसा आशीष मुझे दो अब
हे जगतगुरु! हे जगदीश्वर! हे जगदात्मा! हे ईश! मेरे
हे प्रभु! मेरे इतना देना न झुके कभी भी शीश मेरे
मस्तक मेरा नित ऊचां हो, दिल मे भी शान्ती बनी रहे,
दिल स्वच्छ प्रभु रखना मेरा चेहरे की कान्ति रहे न रहे।
हे जगतजननि! हे जनकसुता! हे वैदेही! माता मेरी,
सन्मुख तेरे करबद्ध खड़ा मैं करने को स्तुति तेरी।
माता मेरी विनती इतनी, मन स्वच्छ सरल मेरा कर दो
नित मुख से निकले प्रेम शब्द, ऐसी वाणी मेरी कर दो
हे मारुतिसुत! अंजनिकुमार, हे महावीर! बलवीर प्रभु
करता हूँ वन्दन मैं तेरा, चरणों से न करना दूर प्रभु
अपने जैसी श्रद्धा भक्ति का, प्रभु मुझमें भी संचार करो
यदि कोई दिखे अवगुण मुझमें तो उसका तुम संहार करो।
तो उसका तुम संहार करो, तो उसका तुम संहार करो।।
📝...@tharv
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