जला के राख कर अब मेरे सब ख्याल को
ख्याल तेरा ही बस मेरे ख्यालों में रहे ।।
प्रेम ही परमात्मा तक कि यात्रा है
परमात्मा प्रेम है । परमात्मा को छोड़ दो तो भी जीवन चलेगा । लेकिन प्रेम को छोड़ दिया तो जीवन का अंत निश्चित है । प्रेम पर ही जीवन की निव टिकी है । प्रेम टुटा या छुटा तो उस पर निर्मित यह शरीर तास के पत्तो की तरह बिखर जाता है । परमात्मा को चाहे तो भूल जाओ, पर प्रेम को कभी मत भूलना । तुम्हारे पास प्रेम है तो परमात्मा खिचा चला आयेगा । प्रेम नही है तो स्वयं तुम्हारा अस्तित्व भी ना रहेगा । तुम्हारे अंदर प्रेम नहीं है तो परमात्मा भी तुम्हे पत्थर की मुर्ति की तरह मंदिरों में पड़ा दिखाई देगा । प्रेम विना सब मुर्दा, लाश की तरह है । प्रेम विना शरीर शरीर ही रह जायेगा और उससे जीवन खो जाएगा ।
भक्ति का सारा सूत्र प्रेम है । और प्रेम से सब का जन्म हुवा है । प्रेम से ही सृष्टि का विकास हुवा है। परमात्मा प्रेम की आत्यंतिक नियति अंतिम खिलावट है , आखिरी ऊंचाई है । संगीत की आखिरी छलांग है । सुर का अंतिम राग है । परमात्मा प्रेम का ही सघन रूप है । जिसने प्रेम को समझ लिया । वह परमात्मा को आसानी से समझ लेगा । परमात्मा को भीड में भी पहचान लेगा । वह कोयले से हीरा निकाल लेगा और समुद्र के गहरे तल से मोती प्राप्त कर लेगा । लेकिन जिसने प्रेम को नही समझा,वह परमात्मा को क्या समझेगा, प्रेमको नही जाना वह परमात्मा प्राप्ति से चूक जायेगा । वह परमात्मा को समझ ही नही पायेगा । वह परमात्मा से चूक जाएगा ।जिसने काम को जाना वही प्रेम को समझ सकता है वही परमात्मा की यात्रा पर जा सकता है।
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