सोच समझकर प्यार
ये प्यार नहीं ये धोखा है ,कहदो कि तुम मेरे नहीं हो ,कह दो की हम साथ नहीं रह सकते
ये प्यार नहीं झूठ है,कहते हैं प्यार कहीं भी कभी भी किसी से भी हो सकता है ,प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती वो तो बस हो जाता है ,किसी से भी कहीं भी, कभी भी ,ज़िन्दगी में किसी भी मोड़ पर कुछ प्रेम कहानियों का अंत शादी तक पहुंच जाता है कुछ नहीं, कोई चुपके से दिल में किसी को किसी कोने में दफन करके नई ज़िंदगी गुज़ारता है ,कोई वहीं ठहरा खड़ा रहता है ,ज़िंदगी रुकती नहीं चलती रहती है, इश्क़, मुहब्बत तो बहादुरों को होता है बुज़दिली में मुहब्बत कहाँ हो पाती है ,समाज की बनाई तमाम हसीन चीजों को ठुकरा कर सिर्फ अपने प्यार को प्यार करना अपनी दुनिया बसाना हर कोई कहाँ कर पाया है।
फिर लोग कहते हैं हमारा समाज बदल रहा है ,धर्म ,जाती अब मायने कहाँ रखते हैं झूठ बोलते हैं लोग ये ही सबसे बड़े हैं इंसान का क्या है वो तो एडजस्ट करता आया है कर ही लेगा ,कर ही रहा है
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here