किताबों को सजाकर मैं निकल आया
नकाबों को हटाकर मैं निकल आया
मिरा दम भी निकलने जब लगा फिर भी
हिचकियाँ ही बताकर मैं निकल आया
#अतिशीघ्र नितेश उपाध्याय
"हजज़ मुसद्दस सालिम 1222
#yqquotes#yqhindi
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बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे
रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं
सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे
ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे
कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे
है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम
बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे
सरकार जॉन ऐलिया साहेब
बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे
सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे
रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं
सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे
ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता
सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे
कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे
है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम
बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे
सरकार जॉन ऐलिया साहेब
राज ग़र गहरे हो तो दिल में दबा दो
लिबास के पहरे हों तो ज़ोरो से हवा दो
हो जायेगा इक दिन दीदार ए मोहब्बत
तुम तो नज़रो से मुहब्बत का गवाह दो
#अतिशीघ्र नितेश उपाध्याय
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