प्रीति गौतम

प्रीति गौतम

यकीं आता नहीं कच्ची नींद में शायद तुझ से ख़्वाबो में भी रिश्ता तोड़ आएं हैं हमें हिजरत की गुफा में याद आता है अपने हाथों से ही किसी और को सौंप आएं हैं ये चांद तू क्यों हैं खफा मुझ से हम तो पुरा जहां उसके नाम कर आएं हैं

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