सोचता हूँ कि एक सुबह किसी किनारे पे बैठ कर लिख डालूं
तुम्हारे सारे फरेब और झूठ...
मगर कभी ये भी सोचता हूँ तुम्हारे चेहरे से ये अलग हैं
कोई यकीन मुझ पर क्यूँ करेगा...
किताबे माज़ी जला रहा हूँ
तुझे मै दिल से भुला रहा हूँ।
सबक जो सीखा है तुझसे दुनिया
वही सबक दोहरा रहा हूँ ।
तेरी मुहब्बत मे जो मुझसे छूटे
उन्हे मैं वापस बुला रहा हूँ ।
तुम्हारे दर पर खड़ा हुआ हूँ ।
मै आ रहा हूँ या जा रहा हूँ ?
किताबे माज़ी जला रहा हूँ........
जैसे नंगे पाँव, फटे पुराने कपड़ों वाले बच्चे अपनी खाली जेब का एहसास लिये दिल को अच्छी लगने वाली चीज़ किसी दुकान के बंद शीशो
से नज़रें लगा कर देखते रहते है ना ,
मैं भी तुमको अक्सर यूंही देखता रहता हूँ .... ।
जैसे नंगे पाँव, फटे पुराने कपड़ों वाले बच्चे अपनी खाली जेब का एहसास लिये दिल को अच्छी लगने वाली चीज़ किसी दुकान के बंद शीशो
से नज़रें लगा कर देखते रहते है ना ,
मैं भी तुमको अक्सर यूंही देखता रहता हूँ .... ।
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