पश्चिमी बिहार के एक छोटे शहर, डुमरांव में फरवरी 1957 में जन्म और वहीँ स्नातक तक शिक्षा. पुस्तकीय पढ़ाई में विशेष रूचि कभी नहीं, बल्कि जीवन में धंसकर उसे पढ़ने-समझने और उसके हर पल को जीने की अधिक ललक. डुमरांव की मिट्टी, उसकी भोजपुरी बोली, उसकी हवा की गंध मेरी स्मृति और मेरे अस्तित्व में व्याप्त. वर्त्तमान में पटना में ज़मीन-जायदाद के क्रय-विक्रय के व्यवसाय में संलग्न. लेखन से एक पेशेवर लेखक की तरह जुड़ाव नहीं. आस-पास घट रही घटनाओं, देश की राजनितिक उथल-पुथल तथा चारो ओर फैली हुई ज़िन्दगी की घमासान के बीच, लेखन स्थितियों के प्रति मेरी एक प्रतिक्रिया है
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