है ! उस संस्कृति के धारक हम,
जहां महाभारत हुआ स्त्री के सम्मान के लिए,
मर्यादा जहां की धरोहर थी।
लंका दहन हुआ स्त्री के सम्मान के लिए।
आज देश की बेटी हिफाजत में ना है,
हम मोमबत्ती पकड़ना क्या सीख गए;
हमने वह संस्कृति ही खो दी ?
रावण की तुलना करते हैं आज के दरिंदों से,
कोई बता दो कि दशानन ने कभी,
अपनी सीमा ना लांघी थी।
स्त्री सम्मान जहां ना हो , वह देश गर्त में डूब रहा।
है नारी पूजी जाती जहां, है वहां देवता
फिर क्यों संस्कारों की बलि चढ़ी जाती ?
फिर एक नारी हवस का शिकार हो जाती !
वह जानवरों का इलाज कर सकी पर, इंसानों ने उसे ना छोड़ा..
कब होगी? सुरक्षित नारी कब जागेगा ईमान देश का?
हमें ना चाहिए , रामराज्य हम तो बस
एक मुस्कान को बेखौफ मुस्कुराते देखना चाहते हैं।
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