Saurabh gupta

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#_vini

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#कहानी

family👨‍👩‍👧‍👦

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घर से दूर नौकरी करने वालों को समर्पित , घर जाता है तो मेरा ही बैग मझे चिढ़ाता है , मेहमान हूँ अब मन पल पल मुझे सताता है माँ कहती सामान बैग में फौरन डालो , हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता . घर पंहुचने से पहले ही लौटने का टिकट , वक्त परिंदे सा उड़ता सा जाता है . उगलियों पर लेकर जाता गिनती के दो दिन , फसलते हुए जाने के दिन पास है आ जाता है अब कब होगा आना सबका पूछना ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है , घर से दरवाजे से निकलने तक , बैग मे कुछ ना कुछभरते जाता हूँ . जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी . घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता सा था में लाइट्स फैन के स्विन्च भूल डगमगाता हूँ मै पास पड़ोस जहाँ बच्चा भी था वाकिफ ,आज बड़े बुर्जुग बोलते बेटा कब आया पूछने चले आते हैं . कब तक रहोगे पूछ कर अनजाने में वो घाव को और गहरा कर जाते हैं ट्रेन में माँ के हाथों की बनी रोटियाँ . रोते हुए आँखों में घुँधला कर जाते है , लौटते वक्त वजनी हुआ बैंग सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है . तू एक मेहमान है अब ये पल मुझे बताता है आज भी मेरा घर मझे वाकई बहुत याद आता है . -S@rg

 घर से दूर नौकरी करने वालों को समर्पित , 
घर जाता है तो मेरा ही बैग मझे चिढ़ाता है ,
मेहमान हूँ अब मन पल पल मुझे सताता है 
 माँ कहती सामान बैग में फौरन डालो , हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता . 
घर पंहुचने से पहले ही लौटने का टिकट , वक्त परिंदे सा उड़ता सा जाता है .
उगलियों पर लेकर जाता गिनती के  दो दिन ,
फसलते हुए जाने के दिन पास है आ जाता है 
अब कब होगा आना सबका पूछना ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है ,
घर से दरवाजे से निकलने तक , बैग मे कुछ ना कुछभरते जाता हूँ .
जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी .
घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता सा था में 
 लाइट्स फैन के स्विन्च भूल डगमगाता हूँ मै
पास पड़ोस जहाँ बच्चा भी था वाकिफ ,आज बड़े बुर्जुग बोलते बेटा कब आया पूछने चले आते हैं .
 कब तक रहोगे पूछ कर अनजाने में वो घाव को  और गहरा कर जाते हैं 
 ट्रेन में माँ के हाथों की बनी रोटियाँ . रोते हुए आँखों में घुँधला कर जाते है , 
लौटते वक्त वजनी हुआ बैंग सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है . 
 तू एक मेहमान है अब ये पल मुझे  बताता है 
आज भी मेरा घर मझे वाकई बहुत याद आता है .

                               -S@rg

घर से दूर नौकरी करने वालों को समर्पित , घर जाता है तो मेरा ही बैग मझे चिढ़ाता है , मेहमान हूँ अब मन पल पल मुझे सताता है माँ कहती सामान बैग में फौरन डालो , हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता . घर पंहुचने से पहले ही लौटने का टिकट , वक्त परिंदे सा उड़ता सा जाता है . उगलियों पर लेकर जाता गिनती के दो दिन , फसलते हुए जाने के दिन पास है आ जाता है अब कब होगा आना सबका पूछना ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है , घर से दरवाजे से निकलने तक , बैग मे कुछ ना कुछभरते जाता हूँ . जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी . घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता सा था में लाइट्स फैन के स्विन्च भूल डगमगाता हूँ मै पास पड़ोस जहाँ बच्चा भी था वाकिफ ,आज बड़े बुर्जुग बोलते बेटा कब आया पूछने चले आते हैं . कब तक रहोगे पूछ कर अनजाने में वो घाव को और गहरा कर जाते हैं ट्रेन में माँ के हाथों की बनी रोटियाँ . रोते हुए आँखों में घुँधला कर जाते है , लौटते वक्त वजनी हुआ बैंग सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है . तू एक मेहमान है अब ये पल मुझे बताता है आज भी मेरा घर मझे वाकई बहुत याद आता है . -S@rg

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kisii samsann k bahar kya khub likha tha,,, aana tho tuje yhaa he tha, puri jindgi k chakar lga diye aane mai... kya mila tuje ess jindgi se, aakhir mai jlaa diya hai tmhare apnoo ne... - s@rg

 kisii samsann k bahar kya khub likha tha,,,
aana tho tuje yhaa he tha, puri jindgi k chakar lga diye aane mai...

kya mila tuje ess jindgi se, aakhir mai jlaa diya hai tmhare apnoo ne...

                                   - s@rg

kisii samsann k bahar kya khub likha tha,,, aana tho tuje yhaa he tha, puri jindgi k chakar lga diye aane mai... kya mila tuje ess jindgi se, aakhir mai jlaa diya hai tmhare apnoo ne... - s@rg

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Do not regret life, But do something that people feel regret after leaving you... - s@rg

 Do not regret life,
 But do something that people feel regret after leaving you...

                      - s@rg

Do not regret life, But do something that people feel regret after leaving you... - s@rg

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It is not too well to be straightforward to the extent,,, Because in the forest firstly the straight tree is cut and the crooked tree is left... - s@rg

 It is not too well to be
straightforward to the
extent,,,
Because in the
forest firstly the straight
tree is cut and the 
crooked tree is left...

                                 - s@rg

It is not too well to be straightforward to the extent,,, Because in the forest firstly the straight tree is cut and the crooked tree is left... - s@rg

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