"पलकों के पीछे कोई ख्वाब गहरा है," दिल को जो समेट ले,
ऐसा जज़्बातों का पेहरा है,
दर्द और तन्हाई के पास भी,
राज़ कोई गहरा है,
एक चेहरा बैठा है हर चेहरे में,
ख़ामोशी का भी एक सहरा है ।
इंतज़ार आज तक न जाने किसका है दिल का बेचैनिओं से ये कैसा रिश्ता है खुश होकर भी मुस्कुराहट नहीं,
दर्द ही अब लगता फरिश्ता हैं,
आखों में ख़ामोशी झलकती है,
लफ़्ज़ों सा पानी आखों से रिसता है,
किसी का हाथ थामे हुए भी तन्हा हूँ मैं,
ये कैसे जज़्बात ये कैसा रिश्ता है ।
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