smiriti abha.ar

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बेबसी की घूँट पीकर ये ज़िन्दगी सींच रही हूँ, जिस्म के हर टुकड़े में वो पल मींच रही हूँ। अधूरे लम्हों के जो रह गए कुछ ख्वाब अधूरे से, उन लम्हों में अपने रास्तों को खींच रही हूँ।

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