" जाने किसकी अज़िय्यत में हूं आखिर क्यों
उसके तमाम हसरतों का मक़बूलियत हैं क्यों "
--- रबिन्द्र राम
#अज़िय्यत -( परेशानी)
#तमाम#हसरतों#मक़बूलियत - (स्वीकृत)
" खुद को अब किस तरफ ना मसरुफ़ रखा जाये ,
मुहब्बत तु हैं तो तुझसे फिर किस कदर ना मा'रूफ़ रखा जाये ,
बज़्मेनाज़ से मैं तुमसे मिलता ही रहता हूं ,
कमबख़्त इस दिल को कहीं तसली भी नहीं मिल रहा . "
--- रबिन्द्र राम
#मसरुफ़#मुहब्बत#मा'रूफ़ ( जान-पहचान)
" हसरतों का अब कौन सा मुकाम बनाते हम ,
दहलीज़ों पे तेरे होने का कुछ यकीनन यकीन आये ,
रुठे - रुठे से जऱा मायूस हो चले अब हम ,
बेशक उसके ज़र्फ़ में इसी शिद्दत से भी हमें भी आजमायें जाये ."
--- रबिन्द्र राम
#हसरतों#दहलीज़ों#ज़र्फ़#आजमायें
" इस उम्मीद में कहीं मुलाकात तो हाेगी ,
जद्दोजहद में इन रातों फिर का क्या करना ,
मुसलसल एहसासों को तबजओ दे तो आखिर क्या ,
सुलगती हिज़्र के रातों का फिर क्या करना ,
नुमाइश मुम्किन तो फिर कहीं बात छेड़े हम ,
वस्ल की गुज़ारिश में तेरे एल्म का फिर क्या करना ."
--- रबिन्द्र राम
" मुख्तलिफ बात थी हम तुझे इशारा क्या करते ,
तेरे साथ चलना था मुझे तुझसे किनारा क्या करते ,
ज़ेहन में आते - जाते महज तेरी बातें ही नागवार थी ,
फिर तुझसे से तेरे होकर और तुझसे बिछड़ के तेरे हिज़्र में गुजारा क्या करते . "
--- रबिन्द्र राम
#मुख्तलिफ#इशारा#ज़ेहन#नागवार#हिज़्र#गुजारा
यूं हासिल होने को हम भी हो जाये ,
हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . "
ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो ,
तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रमाओ . "
--- रबिन्द्र राम
#मुहब्बत#इल्म#ग़ैर#फ़रमाओ
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