लाख की हम ने जान फिशानी भी।
काम आई न लंतरानी भी।
इन हवाओं में तुम हो? हां तुम हो!
ये हकीकत है बदगुमानी भी।
जाने क्या ज़ुल्म ढाएगी आकिब
हाए! ज़ालिम ये जिंदगानी भी।
कर्ब मांगेगा, या ज़ख्मों की दवा मांगेगा।
उन की दहलीज़ से ये सोच कि क्या मांगेगा।
ये वो चौखट है, वो चौखट कि यहां पर आकर
ताज वाला भी फ़कीरों की तरह मांगेगा।
आकिब ज़मीर
#aquibzamir
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