चलती हुयी राह से गुमराह हो गया था ज़िन्दगी को लेकर बेपरवाह हो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? नींद से मेरा नाता टूट सा गया था भूख प्यास से भी ये मन रूठ सा गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? अकेलेपन से मानो प्यार हो गया था एक सच्ची ख़ुशी के लिए दिल लाचार हो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? अपनों के बिच में अनजान हो गया था बिना वजह आँखों में आंसू लाना बड़ा आसान हो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”? आत्मविश्वास तोह मानों,.. जैसे खो गया था आँखें तो खुली थी, मगर आत्मा कबका सो गया था मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया था”?
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