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Poet and writer
Shikha Singh
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ईश्वर मेरे भीतर गुनाहों में भी शामिल है? ,,शिखा सिंह,,
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कहां भुला पाये तेरी कशिश को तू मेरा भी न हुआ और बदनाम हो गये शिखा सिंह
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बदलते जमाने की आँखे बहुत छोटीं है स्वार्थ की परत चढ़ा कर मोहब्बत की इबादत करते है शिखा सिंह
15 Love
धर्म और अंधी आस्था आदमी को हिंसक बनाती है। धर्म के नाम पर दंगे और अंधी आस्था के नाम पर धंधे देश को बर्बाद करते है। शिखा सिंह
बेच दी उसकी खुशियों के ख़ातिर अपनी इच्छाएं! मगर उसके मुल्क में मेरा नाम तक न था। ,,शिखा सिंह ,,
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