White मुख उदास चिंतित विचलित मन सपनों से मैं दूर रहा,
क्या करने आया था जग में क्या करने को मजबूर रहा।
जिसके पीछे भागा जाऊं वो भी मुझसे भाग रहा,
सुलग रही है सांसे मेरी उर में अब वो आग कहां।
जीवन की ये डोर किसी के हाथों में है सौंप दिया,
बस थोड़े पैसों के खातिर कीमती समय झोंक दिया।
घर से दफ्तर, दफ्तर से घर, करते करते बोर हुआ,
ले चल मुझे पहाड़ों में शहरों में इतना शोर हुआ।
धूल फांकता दिनभर और पीता रोज काला धुआं,
शहरों की तो बात ही क्या है वाह क्या तरक्की हुआ।
©Kk_upadhyay
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