है बादलों में धूप सी ये ज़िन्दगी,
है सर्द में कुछ गर्म सी ये खुशी,
जो खुश यहां दिख रहा है भीड़ में,
पी रहा है गम के घूट हर घड़ी,
चादरों की सिलवटों में है छुपा,
हर बूंद आंसू का जो है गिरा,
हां थाम कर जो हांथ तेरा मैं बढ़ा,
तू छोड़ कर वो हांथ आगे बढ़ गई,
सिकवा नहीं है दिल मेरे अब कोई,
तू था नहीं वो जिसको मैं हूं ढूंढ़ता,
है बादलों में धूप सी ये ज़िन्दगी,
है सर्द में कुछ गर्म सी ये खुशी।
- वैवस्वत सिंह।
चलो एक नई दास्तां लिखते है,
खाली पन्नों पर बेइंतहां लिखते है,
कुछ नए मोड़ को आजमां लेते है,
बंद दरवाजों को खट खटा लेते है,
कुछ मंसूबों को भी बयां करते है,
चलो इश्क़ को अब रवां करते है,
चलो कुछ तो नया करते है,
पिछला छोड़ अगला बेपन्हां करतें है,
सितम छोड़ बस अब रहम करते है,
चलो एक नई दास्तां लिखते है,
अंधेरों में अब दिया करते है,
चलो कुछ तो नया करते है।
- वैवस्वत सिंह।
काश मैं बारिश बन जाऊं,
बूंदों सा गिरकर,
सब को छू जाऊं,
धरती को राहत की सांस दिलाऊं,
तन मन भी गीला कर जाऊं,
सबको चैन दिलाऊं,
काश मैं बारिश बन जाऊं,
सबसे जुड़ कर,
सबके मन पढ़ पाऊं,
कभी ज़ोर से बरसूं,
कभी आहिस्ते गिर जाऊं,
सबका दिल बहलाऊं,
काश मैं बारिश बन जाऊं,
जो मिल ना सके,
उन्हें भी मिलाऊं,
धरती को गगन से मिलाऊं,
सबके गम पढ़ पाऊं,
दिल से दिल को मिलाऊं
काश मैं बारिश बन जाऊं,
बूंदों सा गिरकर,
सबको छू जाऊं।
- वैवस्वत सिंह।
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here