नया शहर नए दोस्त
नई सी लगतीं हैं फिज़ाऐं आजकल,
फिर भी कुछ अधुरा सा लगता है
क्योंकि साथ नहीं होती हो तुम आजकल ।
गर्दिश में कटती हैं रातें
सुना-सुना सा लगता है दिन,
जीने का सहारा है तो बस तुम्हारी यादें,
नहीं तो हर कदम मीलों सा लगता है तुम बिन ।
गर तुम होती साथ मेरे
ये शाम कितनी रंगीन होती,
तुम्हारे हाथ में मेरा हाथ होता
और सदियों साथ निभाने का वादा होता ।
ये शहर इतना शोर नहीं कर पाता
कि तुम्हारे नाम को गुम कर सके,
तुम ईकबार बुलाते तो मुझे,
मजाल है किसी शहर की तुम्हारी आवाज़ दबा सके ।।
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