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मंज़िलों से कह दो चल पड़े हैं हम, थोड़ा सब्र करो पहुचं रहे है हम।
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दान करना ही हैं तो भूखे को रोटी दान कर ऐ इंसान, यूं कब तक दान पात्रों में पैसा डालकर ट्रस्टों को करोड़पति बनाता रहेगा|| ©Alok Singh
Alok Singh
12 Love
सुकून की बात मत करो, बचपन वाला रविवार अब नहीं आता.. ©Alok Singh
10 Love
बचपन के किस्से भी अजीब थे, झगड़े भी एक दूसरे के लिए होते थे.. ©Alok Singh
9 Love
मजदूर तो हर कोई है साहब, अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का.. ©Alok Singh
बचपन मुझे छोड़ के जाना चाहता है, पर मेरी ज़िद के आगे उसकी चलती नहीं.. ©Alok Singh
7 Love
"वफ़ा ..? और आज के ज़माने में ..? ख़ैर.. जाता क्या है इसे आज़माने में || ©Alok Singh
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