सफर में एक हाथ छूट जाने को हैं
फासलों में अब फ़ैसले आ जाने को हैं।
मुस्कुराहट होठों ने तो बखूबी सजाई हैं
पर ये बेवफा ऑंखे अब नम हो जाने को हैं।
ख़्वाब नए थक गए दरवाजा खटखटा कर
रातों के लिए मेरी, फिर वही याद आ जाने को हैं।
अरमानों की कब्र छुपाऊॅं कब तक मैं
जज़्बात तैयार बैठ, दफन हो जाने को हैं।
कहां सुन पाया वो अल्फ़ाज़ एक दफा मेरे
अब ये "एक आवाज" खामोश हो जाने को हैं।
©Ek Aawaj
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