सोज़-ए-दिल-ए- बेताब को क्या और बढ़ा दूँ,
रूदाद-ए-मोहब्बत जो सरे बज़्म सुना दूँ,
जाए अदब है पाए सनम ख़ुद को झुका दूँ,
अब इसके सिबा ख़ुद को क्या खुशरंग सज़ा दूँ,
वादा शिकन हो जुर्म-ए-वफ़ा के हो मुरतकिब,
जो तुम हो वो नहीं हूं में आईना दिखा दूँ,
दामन में तेरे ख़ूबरू कलियाँ तो ज़ेब हैं ,
किस तरह सोचता हूँ इन्हें रंगे वफ़ा दूँ,
वो है कि फसलों की हदें पार पार कर गया,
मैंने तो यही चाहा उसे दिल मे जगह दूँ,
तन मन किया अरपन तेरे कदमों पे अल्तमश ,
तोहफ़े में तुझे इसके सिवा और में क्या दूँ।
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©Altmash shaikh
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