ग़ज़ल
बेबसीं मुझे इतना अंदर छोड़े आयी
जैसे रास्तों को उदासी मोड़े आयीं
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एक जंगल रोता हैं खलवत में यूँ जब
उसको मेरी मायूसी तब ओड़े आयीं
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ये जो लड़की इश्क़ वाली, वफ़ा वाली
देखो कुम्हलायें फूल जो तोड़े आयी
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फिर न जानें यादों की तारीकियों में
रुसवा समंदर को जो जोड़े आयी
-शेखऱ
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