संदीप

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relationship quotes . ईर्ष्या की रवानी सुनो ! ईर्ष्या की रवानी में, अब तो हो रही है मनमानी। उसकी आँखो में तो है यारा, लहु और छलकता है पानी। ------------------------------ सफ़लता पर जलने वाले मेरी सफ़लता पर जलने वाले, काग भसुन्डी को मेरा सलाम। नफ़रत की कील ठोकने वाले, देखना इक दिन हो जाएंँगे नीलाम।। -------------------------------------- तेरी हंँसी में ईर्ष्या झलकती है तेरी हंँसी में क्यूँ ईर्ष्या झलकती है, ये खामोशी तेरी अंगड़ाई भरती है। न घूर तू मुझे ईर्ष्या भरी नज़रों से, तेरी नज़रें तो क़ातिलाना लगती हैं।। *संदीप कुमार'विश्वास'* रेणु गाँव, औराही-हिंगना फारबिसगंज, अररिया-बिहार ©संदीप

#कविता  relationship quotes .
    
ईर्ष्या की रवानी

सुनो ! ईर्ष्या की रवानी में,
अब तो हो रही है मनमानी।
उसकी आँखो में तो है यारा,
लहु और छलकता है पानी।
              ------------------------------             
सफ़लता पर जलने वाले

मेरी सफ़लता पर जलने वाले,
काग भसुन्डी को मेरा सलाम।
नफ़रत की कील ठोकने वाले,
देखना इक दिन हो जाएंँगे नीलाम।।
--------------------------------------
तेरी हंँसी में ईर्ष्या झलकती है

तेरी हंँसी में क्यूँ ईर्ष्या झलकती है, 
ये खामोशी तेरी अंगड़ाई भरती है।
न घूर तू मुझे ईर्ष्या भरी नज़रों से,
तेरी नज़रें तो क़ातिलाना लगती हैं।।

*संदीप कुमार'विश्वास'*
रेणु गाँव, औराही-हिंगना 
फारबिसगंज, अररिया-बिहार

©संदीप

relationship quotes . ईर्ष्या की रवानी सुनो ! ईर्ष्या की रवानी में, अब तो हो रही है मनमानी। उसकी आँखो में तो है यारा, लहु और छलकता है पानी। ------------------------------ सफ़लता पर जलने वाले मेरी सफ़लता पर जलने वाले, काग भसुन्डी को मेरा सलाम। नफ़रत की कील ठोकने वाले, देखना इक दिन हो जाएंँगे नीलाम।। -------------------------------------- तेरी हंँसी में ईर्ष्या झलकती है तेरी हंँसी में क्यूँ ईर्ष्या झलकती है, ये खामोशी तेरी अंगड़ाई भरती है। न घूर तू मुझे ईर्ष्या भरी नज़रों से, तेरी नज़रें तो क़ातिलाना लगती हैं।। *संदीप कुमार'विश्वास'* रेणु गाँव, औराही-हिंगना फारबिसगंज, अररिया-बिहार ©संदीप

11 Love

*कोई नहीं है अपना* देखो इतनी बड़ी दुनियाँ में, अब 'कोई नहीं है अपना'। अपनों का व्यवहार तो, परायों के जैसे दिखता है। वे तो नफ़रत की सुलगती, हुई आग में रोज जलते हैं। हमेशा कैंची के समान ही, मुँह उनके रोज़ाना चलते हैं। मुझे तो दुश्मन के जैसे यहाँ, अब अपने सम्बन्धी लगते हैं। हर बात पर मुझे वे ताने देते हैं, फिर भी करता हूँ मैं 'संदीप', अपने सब रिश्ते-नातों से प्यार। धन-दौलत को छोड़ कर सदा मैं अपने रिश्तों को चुनता हूँ। जब टूटे रिश्तों को मैं प्यार से, अपनाता हूँ तो उनके सपने भी मुझे अपने सपनों से लगते हैं। संदीप कुमार 'विश्वास'✍️ ©संदीप

#कविता  *कोई नहीं है अपना*

देखो इतनी बड़ी दुनियाँ में,
अब 'कोई नहीं है अपना'।
अपनों का व्यवहार तो,
परायों के जैसे दिखता है।

वे तो नफ़रत की सुलगती,
हुई आग में रोज जलते हैं।
हमेशा कैंची के समान ही,
मुँह उनके रोज़ाना चलते हैं।

मुझे तो दुश्मन के जैसे यहाँ,
अब अपने सम्बन्धी लगते हैं।
हर बात पर मुझे वे ताने देते हैं,
फिर भी करता हूँ मैं 'संदीप',
अपने सब रिश्ते-नातों से प्यार।

धन-दौलत को छोड़ कर सदा 
मैं अपने रिश्तों को चुनता हूँ।
जब टूटे रिश्तों को मैं प्यार से,
अपनाता हूँ तो उनके सपने भी 
मुझे अपने सपनों से लगते हैं।

संदीप कुमार 'विश्वास'✍️

©संदीप

*कोई नहीं है अपना* देखो इतनी बड़ी दुनियाँ में, अब 'कोई नहीं है अपना'। अपनों का व्यवहार तो, परायों के जैसे दिखता है। वे तो नफ़रत की सुलगती, हुई आग में रोज जलते हैं। हमेशा कैंची के समान ही, मुँह उनके रोज़ाना चलते हैं। मुझे तो दुश्मन के जैसे यहाँ, अब अपने सम्बन्धी लगते हैं। हर बात पर मुझे वे ताने देते हैं, फिर भी करता हूँ मैं 'संदीप', अपने सब रिश्ते-नातों से प्यार। धन-दौलत को छोड़ कर सदा मैं अपने रिश्तों को चुनता हूँ। जब टूटे रिश्तों को मैं प्यार से, अपनाता हूँ तो उनके सपने भी मुझे अपने सपनों से लगते हैं। संदीप कुमार 'विश्वास'✍️ ©संदीप

10 Love

#कविता  मेरे घर-आँगन की रानी हो तुम
--------------------------------------

मिट्टी की महक व चेहरे की दमक,
और सुंदरता की मूरत हो तुम।

अपने शब्दों से बयांँ मैं क्या करूंँ,
मेरे लिए बड़ी लाजवाब हो तुम।

देख जिसे ये गुलाब भी शरमा जाए,
मेरे लिए वो कली कचनार हो तुम।

यौवन तेरा मन को मेरे लुभा जाए,
अब तो जीवन का ऐहसास हो तुम।

रब ने बनाया जिसे फ़ुर्सत से मेरे लिए, 
मेरा तो वो बेमिसाल साथी हो तुम।

ऐ मेरी कजरारी तिरछी नैंनो वाली,
ख्वाब ही नहीं हकीक़त में भी हो तुम।

ख़्वाब तो पलभर के लिए होता है,
मेरे जीवन भर की तालाश हो तुम।

सुनो हकीक़त ये है कि मेरे लिए तो,
मेरे इस घर-आँगन की रानी हो तुम।

    संदीप कुमार 'विश्वास'✍️

©संदीप

मेरे घर-आँगन की रानी हो तुम -------------------------------------- मिट्टी की महक व चेहरे की दमक, और सुंदरता की मूरत हो तुम। अपने शब्दों से बयांँ मैं क्या करूंँ, मेरे लिए बड़ी लाजवाब हो तुम। देख जिसे ये गुलाब भी शरमा जाए, मेरे लिए वो कली कचनार हो तुम। यौवन तेरा मन को मेरे लुभा जाए, अब तो जीवन का ऐहसास हो तुम। रब ने बनाया जिसे फ़ुर्सत से मेरे लिए, मेरा तो वो बेमिसाल साथी हो तुम। ऐ मेरी कजरारी तिरछी नैंनो वाली, ख्वाब ही नहीं हकीक़त में भी हो तुम। ख़्वाब तो पलभर के लिए होता है, मेरे जीवन भर की तालाश हो तुम। सुनो हकीक़त ये है कि मेरे लिए तो, मेरे इस घर-आँगन की रानी हो तुम। संदीप कुमार 'विश्वास'✍️ ©संदीप

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#शायरी  
       
              जब तक जिंदा हूँ लिखता रहूँगा'

                जब तक जिंदा हूँ लिखता रहूँगा,
                जिंदा होने का प्रमाण देता रहूँगा,
                साहित्य-नगरी को हरा-भरा कर,
                अपनी कलम से सींचता रहूँगा।
           
                      संदीप कुमार'विश्वास'✍️

©संदीप

जब तक जिंदा हूँ लिखता रहूँगा' जब तक जिंदा हूँ लिखता रहूँगा, जिंदा होने का प्रमाण देता रहूँगा, साहित्य-नगरी को हरा-भरा कर, अपनी कलम से सींचता रहूँगा। संदीप कुमार'विश्वास'✍️ ©संदीप

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#कविता #pen        (1)नफ़रतों के शहर में

                नफ़रतों के इस शहर में हम,
                प्रेम के दीप जलाने आए हैं।
                नफ़रत से प्रेम बढ़ता नहीं,
                आज यही बताने आए हैं।
      
                (2)यारों शहर बना शमशान

                    यारों शहर बना शमशान,
               किस बात का करते हो गुमान।
                एक दिन तुझको जाना होगा,
                  तो मत कर यूँ तू अभियान।
     
                (3)झूठ बोलना पाप है

                   जहाँ हो झूठ,वहांँ पश्चाताप है।
                 जहांँ पश्चाताप,हरि वहीं आप हैं।
                 गर झूठ बोलना पाप है तो फिर,
              सचको छुपाना उससे भी बड़ा पाप है
          
               (4)जब तक जिंदा हूँ लिखता रहूँगा

                जब तक जिंदा हूँ लिखता रहूँगा,
                जिंदा होने का प्रमाण देता रहूँगा,
                साहित्य-नगरी को हरा-भरा कर,
                अपनी कलम से सींचता रहूँगा।
           
                      संदीप कुमार'विश्वास'

©संदीप

#pen

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#कविता  *मीरा का  विश्वास*

मीरा  संग  जब हो 'विश्वास' तो
क्यों करे वो देखो किसी से आस

रिश्तों के अटूट बंधन में बंधकर,
निभाए वो जीवन भर का साथ। 

पत्नी धर्म को निभाए हँसी-खुशी से 
फिर क्यों करे वो किसी पर विश्वास 

बिन मीरा संग विश्वास लगे अधुरा
लगता है मन देखो जग में बेकार

बिन  मीरा के हर संयोग है अधुरा-
विश्वास बेगैर होए ना सपना कोई पूरा

अपने घर-आँगन को वा प्यार से सजाए
दामन खुशियों का भर मन वा छा जाए

हर सुख-दुःख में मीरा साथ निभाए
फिर क्यों करे वो किसी से आस

    *संदीप कुमार'विश्वास'*

©संदीप

कविता

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