और फिर एक दिन, जब घड़ी की टिक - टिक,
समय को - समय से पहले - समय के पार ले जाने को आतुर हो जाएगी...
जब धूप ढलते-ढलते स्याह रातों की दहलीज पर जा खड़ी होगी...
जब दिन भर का थका हारा सूरज, आसमान से उतर कर,
दूर क्षितिज पर बैठ, वापसी की राह ढूँढ रहा होगा...
जब पंछी भी अपने - अपने घोंसले ढूँढने में व्यस्त होंगे,,,
जब मंदिरों में आरती की घंटियां बज कर सबको बुला रही होंगी,,,
जब दूर कहीं कोई भौंरा, किसी कमल की पंखुड़ियों में जा चुका होगा,,,
जब नदी के दूसरे किनारे से एक नाव पर जलती हुई मद्धम सी रोशनी चमकने लगेगी,,,
जब गर्म हवाओं की तपिश बुझने की कगार पर होगी..
तब, हाँ तब हमें सबसे ज्यादा जरूरत होगी एक - दूसरे के साथ की...
बोलो उस वक़्त मेरे साथ रहोगी न...
©Shukla Ashish
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