नौकरी वाली बहू
पंखे जैसी घूमती है नौकरी वाली बहू
घर वालों को फिर भी ना रास आती
नौकरी वाली बहू
सुबह शाम करती घर का काम
दिन में भी कहा इसे आराम
मुश्किलों को दोस्त बना
वो मंजिल अपनी पा लेती है
मां बाप की शिक्षा से
हर समस्या का समाधान कर लेती है
नौकरी वाली बहू
घर और नौकरी दोनों को संभाल लेती है
घरवालों को ही नहीं
रिश्तेदारों तक को जवाब देना पड़ता है
मुश्किल होती है वो घड़ी नौकरी वाली बहू के लिए
जब मायके में हो, फंक्शन और ऑफिस में मन लगाना पड़ता है
खून के आंसू रोती है
6 महीने का जब बच्चा घर पर छोड़ नौकरी को जाना पड़ता है
रातों को वापस घर आकर छाती से बच्चा जब लगाती है, दुनिया के दिए सब ताने वो भूल जाती है
फिर भी किसी को रास नही आती नौकरी वाली बहू।
............jhd.......
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