White प्रेम ताउम्र सिर्फ़ प्रेम ही रहता है बिल्कुल आसमान में उड़ते हुए परिंदों की तरह , बशर्ते वो बस हासिल ना हो।
विवाह, ताउम्र सिर्फ़ विवाह ही रहता है, विवाह में कभी प्रेम नहीं हो सकता , होता है तो सिर्फ़ जिम्मेदारियों का बोझ।।
विवाह चाहे "प्रेम विवाह" ही क्यों ना हो ,
विवाह के बाद "प्रेम विवाह" से प्रेम कहीं लुप्त हो जाता है, और बचता है तो सिर्फ़ विवाह ,
वही विवाह जो जिम्मेदारियों के बोझ तले उम्रभर के लिए दबा रह जाता है।
विवाह बांधता है बंधनों में, पिंजरे के जैसा स्वतंत्रता को कैद रखता है ,
जबकि प्रेम स्वतंत्र होता है , लापरवाह , आज़ाद होता है, बंधनों से मुक्त और चाहतों से परे।
©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
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