Abhishek Kumar

Abhishek Kumar Lives in Kahalgaon, Bihar, India

मैं एक छात्र हूं, फ़िलहाल संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी कर रहा हूं। वैसे मुझे शायरी लिखना और पढ़ने में बहुत मजा आता है। मैं कविताएं भी लिखता हूं। अपने जीवन काल में मैंने कई कविताएं लिखी हैं। बस दोस्तों आप लोगों का आशीर्वाद चाहिए आप लोग इसी तरह हमारा समर्थन करते रहे।

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जिंदगी

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Tuesday, 3 September | 10:34 pm

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"गांव की होली" तम दूर हुआ,आ गया उजाला, होली का पर्व बड़ा निराला। खुशियां ही खुशियां हर ओर, रंगों से बनते रिश्तो की डोर। वह देखो चली, रंगो की टोली, चलो मनाएं गांव की होली। ढोलक,झाल,मृदंग की धुन, दिल को मिलता बड़ा सुकून। भरकर हाथों में गुलाल, रंग देते सब के मुंह और गाल। सुख से भर जाती सबकी झोली, चलो मनाएं गांव की होली। मंद मंद बहती बयार, जीवन में भर देता प्यार, सब गाते फगुआ के गीत, यही है हमारे गांव की रीत, आंगन में बनते सबके रंगोली, चलो मनाएं गांव की होली। रंगों से भर कर पिचकारी, सबको रंग देते बारी-बारी। होलिका को दहन करके, अच्छाई की उम्मीदें भर के। गले लगाते सारे हमजोली, चलो मनाएं गांव की होली। घर में बनते स्वादिष्ट पकवान, सबके घरों में आते मेहमान। खाकर दही बाड़ा और पुआ, बड़े देते सब को दुआ। लगा के गुलाल भाभी जी बोली, चलो मनाएं गांव की होली।। -अभिषेक कुमार © Poet Abhishek Kumar

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तम दूर हुआ,आ गया उजाला,
होली का पर्व बड़ा निराला।
खुशियां ही खुशियां हर ओर,
रंगों से बनते रिश्तो की डोर।
वह देखो चली, रंगो की टोली,
चलो मनाएं गांव की होली।

ढोलक,झाल,मृदंग की धुन,
दिल को मिलता बड़ा सुकून।
भरकर हाथों में गुलाल,
रंग देते सब के मुंह और गाल।
सुख से भर जाती सबकी झोली,
चलो मनाएं गांव की होली।

मंद मंद बहती बयार,
जीवन में भर देता प्यार,
सब गाते फगुआ के गीत,
यही है हमारे गांव की रीत,
आंगन में बनते सबके रंगोली,
चलो मनाएं गांव की होली।

रंगों से भर कर पिचकारी,
सबको रंग देते बारी-बारी।
होलिका को दहन करके,
अच्छाई की उम्मीदें भर के।
गले लगाते सारे हमजोली,
चलो मनाएं गांव की होली।

घर में बनते स्वादिष्ट पकवान,
सबके घरों में आते मेहमान।
खाकर दही बाड़ा और पुआ,
बड़े देते सब को दुआ।
लगा के गुलाल भाभी जी बोली,
चलो मनाएं गांव की होली।।



-अभिषेक कुमार

© Poet Abhishek Kumar
 'जीवन का झरना'
- आरसी प्रसाद सिंह

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