Preeti Gupta

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सोच रही थी, आपको सोचकर कुछ नया लिखूं जो प्रसांगिक भी रहे हम जब विवाह में,वचन लेते सात फेरों के साथ कि सात जन्म तक रहेंगें साथ, तब रहता नहीं ज्ञात कौन सा जन्म है हम बस ये चाहते हैं कि गर सात जन्म के बाद भी प्रसन्न हो मुझसे ईश्वर तो भी रहें आप ही वर। ©Preeti Gupta

#कविता #hugday  सोच रही थी, आपको सोचकर 
कुछ नया लिखूं
जो प्रसांगिक भी रहे 
हम जब विवाह में,वचन लेते सात 
फेरों के साथ 
कि सात जन्म तक 
रहेंगें साथ, तब रहता नहीं ज्ञात
कौन सा जन्म है
हम बस ये चाहते हैं
कि गर सात जन्म के बाद भी 
प्रसन्न हो मुझसे ईश्वर
तो भी रहें आप ही वर।

©Preeti Gupta

#hugday

10 Love

अब कहाँ तुम, अब कहाँ हम दोनों ही आप हो गए हैं। ©Preeti Gupta

#विचार #Stars  अब कहाँ तुम,
अब कहाँ हम
दोनों ही 
आप हो गए हैं।

©Preeti Gupta

#Stars

9 Love

यूँ तो सुन्दर स्मृतियों में सदा आते-जाते रहते हो काश,सदा साथ ही रहते तो झलक होती मेरी प्रतियों में। प्रीती अमित गुप्ता

#feather  यूँ तो सुन्दर स्मृतियों में 
सदा आते-जाते रहते हो
काश,सदा साथ ही रहते तो
झलक होती मेरी प्रतियों में।

प्रीती अमित गुप्ता

#feather

5 Love

यूँ दूर से ही बातें हो जाती है दर्शन न सही मन गति ही ज्ञात हो जाती है कहाँ, कौन और कैसा शब्दों के मानक से अनुभूति हो जाती है कोई आवरण नहीं मित्रता के मध्य प्रायः हृदय की पवित्रता समझ आ जाती है।

 यूँ दूर से ही 
बातें हो जाती है
दर्शन न सही 
मन गति ही
ज्ञात हो जाती है
कहाँ, कौन और कैसा
शब्दों के मानक से
अनुभूति हो जाती है
कोई आवरण नहीं
मित्रता के मध्य
प्रायः हृदय की
पवित्रता समझ
आ जाती है।

यूँ दूर से ही बातें हो जाती है दर्शन न सही मन गति ही ज्ञात हो जाती है कहाँ, कौन और कैसा शब्दों के मानक से अनुभूति हो जाती है कोई आवरण नहीं मित्रता के मध्य प्रायः हृदय की पवित्रता समझ आ जाती है।

9 Love

मैं रेत पर रात को लिख रही थी मैं रेत पर रात को लिख रही थी कुछ बुझी सी कुछ थमी सी थी हाथ कांप से रहे थे दांत किटकिटा रहे थे ध्यान से लिखना चाह रही थी कुछ सीखना चाह रही थी मैं समुद्र किनारे ही थी मेरी यात्रा का आरम्भ था मैं पार करके किनारे नहीं आई थी अभी पार करके जाना था तैरना नहीं आता था इसलिए मैं किनारे बैठ कर लिख रही थी। प्रीती अमित गुप्ता

#weather  मैं रेत पर रात को लिख रही थी


मैं रेत पर रात को 
लिख रही थी
कुछ बुझी सी 
कुछ थमी सी थी  
हाथ कांप से रहे थे 
दांत किटकिटा रहे थे 
ध्यान से लिखना 
चाह रही थी
कुछ सीखना 
चाह रही थी मैं
समुद्र किनारे ही थी 
मेरी यात्रा का  आरम्भ था
मैं पार करके किनारे 
नहीं आई थी
अभी पार 
करके जाना था 
तैरना नहीं आता था 
इसलिए मैं
किनारे बैठ कर
लिख रही थी।


प्रीती अमित गुप्ता

#weather

9 Love

'अधर' तो अधीर होते हैं हृदय जिनके सुदृढ़ होते हैं 'पीर' की 'पीर' को यहाँ कौन जान पाता है कौन किसका होता है कौन किसके लिए जीया है हो कोई भी पीड़ा किसी को पीड़ा को उसने ही सहा है नीर नहीं पीर है उसकी अंखियों से जो जल बहा है वो कौन है? कैसा है? ये विचार नहीं रहता है प्रसन्नचित्त मुख ध्यान रहता है कितना अच्छा है वो सदा प्रसन्न रहता है इतनी ही है सांसारिक समझ संसार बस यही कहता है।।

#weather  'अधर' तो अधीर होते हैं 
हृदय जिनके सुदृढ़ होते हैं
'पीर' की 'पीर' को 
यहाँ कौन जान पाता है
कौन किसका होता है
कौन किसके लिए जीया है
हो कोई भी पीड़ा किसी को
पीड़ा को उसने ही सहा है
नीर नहीं पीर है उसकी
अंखियों से जो जल बहा है
वो कौन है? कैसा है?
ये विचार नहीं रहता है
प्रसन्नचित्त मुख ध्यान रहता है
कितना अच्छा है वो
सदा प्रसन्न रहता है
इतनी ही है सांसारिक समझ
संसार बस यही कहता है।।

#weather

7 Love

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