Unsplash ये इक दुनिया है सपनों की
परवाह नहीं है अपनो की।
तरक्की के इस राह में
कुछ साथ चले, कुछ छूट गए।
सुख की अंधी चाह में
अपने ही अपनो से रूठ गए ।
निकला था जब जग जीतने
संग अपनों का एक अंबार था ,
जेबें तो थी खाली पूरी,मगर
प्यार अपनों का अपरम्पार था
अब पास संपदा का भंडार है
आंगन सुखों से गुलज़ार है
फिर भी मन क्यों उदास है?
अब बांकी कौन सी प्यास है ?
जब मैंने खुद से बात किया
संग बिखरा अपना जज़्बात किया
फिर अपने मन का जवाब आया
यकीं करो इस बार लाज़वाब आया
खुले हाथ हो खाली हो जेबें
फिर भी मुट्ठी में संसार है
मगर अपनों के प्यार बिना
ये मानव जीवन बेकार है ।।
©Prashant kumar pintu
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