एक वस्ल की, मैं याद हूँ
तेरी ज़िंदगी के साथ हूँ
उसे छोडने का जो मर्ज़ है
उस हिज्र की, मैं याद हूँ
इस दर्द का, वो राज है
वो दर्द से भी, बाज़ है
अब दर्द बनकर याद हूँ
जो रंजिशें थी, अब याद हूँ
कुछ काफ़िरों की राह है
सब फूल कांटे काह हैं
हर रासते का साथ हूँ
जो वासते थे, अब याद हूँ
तेरे मर्म मे वो निशान है
उस अक्स मे जो रेहान है
वो इत्र उसकी याद हूँ
हर अक्स उसकी याद हूँ
उसे निहारना अबसार कर
पलों को रोकना ऐतबार पर
वो वक़्त अब मैं याद हूँ
तस्वीर बनकर याद हूँ
नादान बनकर रूठना
झुकी निगाह कर देखना
हर अश्क़ तेरे, याद हूँ
हर लब्ज़ तेरे, याद हूँ
एक वस्ल की, मैं याद हूँ
उस हिज्र की, मैं याद हूँ
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