रात लोरी सुना रही,
तारे देखो टिमटिमा रहे!
आसमान है मंत्र मुग्ध,
सब जन आराम फरमा रहे!
पर तेरा घोंसला तो है अधूरा,
इस जाल में फंस जाना नहीं,
पूरा करना है अभी तो कर्म,
नैना जगते रहना, सोना नहीं!
देखो ये माया का जाल,
काली घनेरी रात का उछाल,
निंद्र-वश सब सुस्ता रहे,
सपनों में खोते जा रहे!
ओ नैना! जाल में फंस जाना नहीं,
घर बनाना बाकी है, नैना सो जाना नहीं!
थका है ये नन्हा सा तन,
थकने से रुक जाना नहीं;
इक घर सजाना है रात भर,
नैना जगते रहना, सोना नहीं!
©Rachit Kulshrestha
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