तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं, रात भी आई थी और चाँद भी था, सांस वैसे ही चलती है हमेशा की तरह, आँख वैसे ही झपकती है हमेशा की तरह, थोड़ी सी भीगी हुई रहती है और कुछ भी नहीं, होंठ खुश्क होते है, और प्यास भी लगती है, आज कल शाम ही से सर्द हवा चलती है, बात करने से धुआ उठता है जो दिल का नहीं, तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं रात भी आई थी और चाँद भी था, हाँ मगर नींद नहीं ... नींद नहीं.....
©एक गुमनाम मुशाफिर
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