Saurav Shubham

Saurav Shubham Lives in Dhanbad, Jharkhand, India

कुछ है जो है नही, जिसका पता मुझे भी नही।। 😅

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White Ghar se jo tu nikal rha Fir ek paanv se kyu chal rha hai? Ghayal in pankho pr tu Marham kab lgaega? Tu kab chalang lgaega Tu kab chalang lagaega.. Agar honsle hai kuch ab v baaki To intezar hai tujhe kiske sath ki? Dahaad le apni aawazo me Tu bediyan kab tak bjaega? Tu kab chalang lgaega Tu kab chalang lgaega ©Saurav Shubham

#sad_quotes  White Ghar se jo tu nikal rha 
Fir ek paanv se kyu chal rha hai?
Ghayal in pankho pr tu 
Marham kab lgaega?
Tu kab chalang lgaega 
Tu kab chalang lagaega..

Agar honsle hai kuch ab v baaki 
To intezar hai tujhe kiske sath ki?
Dahaad le apni aawazo me 
Tu bediyan kab tak bjaega?
Tu kab chalang lgaega 
Tu kab chalang lgaega

©Saurav Shubham

#sad_quotes

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Gile tere badan ki pyas Mai apni hontho se sulgaunga Fir tere in jharakhon me Mai ramta chala jaunga Bhar lunga tujhe mai baaho me Tere saanso ko chuu jaunga Paresan karti seene ki gulista tumhari Dekhn mai ek din pura chand kha jaunga ©Saurav Shubham

#saanjh #Chand  Gile tere badan ki pyas 
Mai apni hontho se sulgaunga 
Fir tere in jharakhon me 
Mai ramta chala jaunga 
Bhar lunga tujhe mai baaho me 
Tere saanso ko chuu jaunga 
Paresan karti seene ki gulista tumhari 
Dekhn mai ek din pura chand kha jaunga

©Saurav Shubham

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उलझन poetry quotes

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White चश्मा लग गया मेरी इन आंखों में, ऊपर से बस अंधेरा है मेरी इन राहों में कैसे ढूंढ के लाऊं मैं मीलों का पत्थर हर पत्थर पर निशान है मेरे अरमानों के कागज़ का नाव सब डूबने लगा मेरा  जाने कौन बैठा है आसमानों में कोई तो बताए यहां से आगे का रास्ता भटककर मिली है मंजिले जिन्हे इन राहों में अब तो जवाब भी नही देता ये आईनों में बैठा शख्स उलझा रहता है अक्सर अपने ही किसी सवालों में अब तो दरिया तक पार नही कर पाती जज्बें हमारी कभी बांधता था समंदर मैं अपनी बाहों में कहां जाकर बस गई सारी खुशियां हमारी मैं लापता घूम रहा दर-बदर अनजानो में ©Saurav Shubham

 White  चश्मा लग गया मेरी इन आंखों में,
ऊपर से बस अंधेरा है मेरी इन राहों में
कैसे ढूंढ के लाऊं मैं मीलों का पत्थर
हर पत्थर पर निशान है मेरे अरमानों के
कागज़ का नाव सब डूबने लगा मेरा 
जाने कौन बैठा है आसमानों में
कोई तो बताए यहां से आगे का रास्ता
भटककर मिली है मंजिले जिन्हे इन राहों में
अब तो जवाब भी नही देता ये आईनों में बैठा शख्स
उलझा रहता है अक्सर अपने ही किसी सवालों में
अब तो दरिया तक पार नही कर पाती जज्बें हमारी
कभी बांधता था समंदर मैं अपनी बाहों में
कहां जाकर बस गई सारी खुशियां हमारी
मैं लापता घूम रहा दर-बदर अनजानो में

©Saurav Shubham

Uljhan

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Saurav Shubham's Stories in 2018 #Throwback2018 Saurav Shubham की कहानियाँ 2018 में #लम्हें2018 #Nojoto2018

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