रिश्ता निभाना चाहिये
वक़्त कैसा भी हो रिश्ता निभाना चाहिये।
हर समय तो इंसा को मुस्कुराना चाहिये।
जीवन में अगर संग सबका पाना हो तो,
मधुर वाणी बोल सबको रिझाना चाहिये।
इस जहां में अपनी अलग पहचान बनाने,
दिल में बसने का हुनर भी आना चाहिये।
बोली में कड़वाहट घोलकर इंसा को,
ना कभी किसी का दिल जलाना चाहिये।
दौलत, शौहरत तो आती जाती रहेंगी,
इन पर तो कभी भी न इतराना चाहिये।
नेकी कर और दरिया में डाल के तर्ज पर,
अपने किये कामो को न गिनाना चाहिए।
कर रहा 'प्रवीण' विनम्र विनती सबसे यही,
बैर सारे भूल सबको अपना बनाना चाहिये।
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