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Jai shree ram कृपया पूरा पढ़े जो लोग कहते है कि रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया और सीता माता का हरण भी कर ले गया, तो इतना शक्तिशाली होने पर भी धनुष क्यों नहीं उठा पाया? तो उनके लिए बता दूं कि इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और सम्मान की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था। जिस समय रावण ने धनुष उठाने की कोशिश की वह उस समय पूरी तरह अहंकार में था। वह कैलाश पर्वत तो उठा सकता था लेकिन धनुष नहीं। धनुष को तो वह हिला भी नहीं सका था। रावण धनुष के पास एक अहंकारी और शक्तिशाली व्यक्ति का घमंड लेकर गया था। रावण जितनी उस धनुष में शक्ति लगाता वह धनुष और भारी हो जाता था। वहां सभी राजा अपनी शक्ति और अहंकार से हारे थे। जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझते थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्होंने धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया। प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन खुद ही चला गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेम पूर्वक उठाया और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया। इसलिए तो राजा जनक अपनी बेटी सीता का विवाह एक ऐसे वर से करना चाहते थे जो धनुष को उठा सके क्योंकि उसे उठाने वाला कोई योग्य ही होगा। इस बात से सीख मिलती है कि व्यक्ति का अहंकार ही उसे दुर्बल बनाता है। ©@rajinspire9{Rajeev}

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जो लोग कहते है कि रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया और सीता माता का हरण भी कर ले गया, तो इतना शक्तिशाली होने पर भी धनुष क्यों नहीं उठा पाया?
तो उनके लिए बता दूं कि 

इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और सम्मान की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।
 
जिस समय रावण ने धनुष उठाने की कोशिश की वह उस समय पूरी तरह अहंकार में था। वह कैलाश पर्वत तो उठा सकता था लेकिन धनुष नहीं। धनुष को तो वह हिला भी नहीं सका था। रावण धनुष के पास एक अहंकारी और शक्तिशाली व्यक्ति का घमंड लेकर गया था। रावण जितनी उस धनुष में शक्ति लगाता वह धनुष और भारी हो जाता था। वहां सभी राजा अपनी शक्ति और अहंकार से हारे थे।
 
जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझते थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्होंने धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया। प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन खुद ही चला गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेम पूर्वक उठाया और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया। इसलिए तो राजा जनक अपनी बेटी सीता का विवाह एक ऐसे वर से करना चाहते थे जो धनुष को उठा सके क्योंकि उसे उठाने वाला कोई योग्य ही होगा। 
इस बात से सीख मिलती है कि व्यक्ति का अहंकार ही उसे दुर्बल बनाता है।

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