White "शहर का अकेलापन और स्वार्थ की सच्चाई"
हर शहर मे एक उदास कोना होता है,
जहाँ होती है कडी धूप वही घनघोर अंधेरा होता है।
भीड बोहत है हर गली हर मोड पर,
पर कोई साथ नही चलता।
हर किसी की अपनी मंजिल ....
हर किसिका अपणा रास्ता होता है,
शोर बहोत है इन गलिओ मे इन शहरो मे
पर कोई किसींकी नही सूनता।
याहा दोस्ती कुछ नही यारी कुछ नही
सबका अपना अपना स्वार्थ होता है।
तुम दो कदम चलो पिछे खीछ लेती है दुनिया,
चार कदम जो साथ चले पैसा हमदर्द काहा होता है।।
तुफानो मे टेहनिया भी साथ छोड देती है पत्तो का,
पेड धरती से जुडा है पैसा यहा कोन होता है।
सबका अपना स्वार्थ सबकी अपनी मंजिल होती है।।
- वैष्णवी कोळसकर
©Vaishnavi Kolaskar
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