मैं जान हथेली पर लाकर रख दु ग़र अपनों के लिए, फ़िर भी मेरे अपने अक़्सर रूठ जाया करते हैं,
और समझ नहीं आता के आखें मेरी छोटी हैं या सपने मेरे बड़े है, क्योंकि अक़्सर मेरे सपने टूट जाया करते हैं
बहुतों ने कोशिश की है हमे झुकाने की लेकिन यू तो कोई उंगली भी उठा नहीं पाया
और प्यार है तुझसे तभी झुकते है तेरे सामने, वर्ना आजतक इस शख्स को कोई इतना झुका नहीं पाया
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