White ॐ गुरवे नम: ******************************* | हिंदी Poetry

"White ॐ गुरवे नम: ******************************* प्रथम गुरू मांँ को नमन, द्वितीय गुरु हे तात! गुरु के भी गुरु शिव हरे, चरण गहूंँ दिन रात। जिन घर गुरु - पूजा नहीं, भाव नहीं सत्कार। उमा - रमा-शारद विमुख, होता कष्ट अपार।। गुरु को पहले पूजिए, ता पीछे ‌ गोविन्द। दिल में हो मांँ भारती, मुख पर हो जय हिंद।। मन पावन हिय शुद्धता, वाणी मधुरित होय। शाश्वत जिसके शीश पर,किरपा गुरु की होय। हिय से तम को दूर कर, देते ज्ञान - प्रकाश। मांँ - वाणी की हो कृपा, करते सदा प्रयास।। श्री गणेश करना नहीं, बिन गुरु - आज्ञा मान। मन प्रसन्न गुरु का अगर,कार्य सिद्ध तब जान। गुरु पद से गुरु गिरि नहीं, नहीं महेश दिनेश। रघुवर 'पुरुषोत्तम' बने, पाकर गुरु उपदेश। अरुण शुक्ल ‘अर्जुन' प्रयागराज (पूर्णत: मौलिक एवं स्वरचित) . ©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'"

 White ॐ गुरवे नम:
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प्रथम गुरू मांँ को नमन, द्वितीय गुरु हे तात! 
गुरु के भी गुरु शिव हरे, चरण गहूंँ दिन रात। 

जिन घर गुरु - पूजा नहीं, भाव नहीं सत्कार। 
उमा - रमा-शारद विमुख, होता कष्ट अपार।।

गुरु  को   पहले  पूजिए,  ता  पीछे ‌ गोविन्द। 
दिल में हो मांँ भारती, मुख पर हो जय हिंद।। 

मन पावन हिय शुद्धता, वाणी मधुरित  होय। 
शाश्वत जिसके शीश पर,किरपा गुरु की होय।

हिय से तम को दूर  कर, देते ज्ञान - प्रकाश। 
मांँ - वाणी की हो कृपा, करते सदा प्रयास।।

श्री गणेश करना नहीं, बिन गुरु - आज्ञा मान।
मन प्रसन्न गुरु का अगर,कार्य सिद्ध तब जान।

गुरु पद से गुरु गिरि नहीं, नहीं महेश दिनेश।
रघुवर  'पुरुषोत्तम'  बने, पाकर  गुरु  उपदेश।
अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'
प्रयागराज 
(पूर्णत: मौलिक एवं स्वरचित)

















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©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

White ॐ गुरवे नम: ******************************* प्रथम गुरू मांँ को नमन, द्वितीय गुरु हे तात! गुरु के भी गुरु शिव हरे, चरण गहूंँ दिन रात। जिन घर गुरु - पूजा नहीं, भाव नहीं सत्कार। उमा - रमा-शारद विमुख, होता कष्ट अपार।। गुरु को पहले पूजिए, ता पीछे ‌ गोविन्द। दिल में हो मांँ भारती, मुख पर हो जय हिंद।। मन पावन हिय शुद्धता, वाणी मधुरित होय। शाश्वत जिसके शीश पर,किरपा गुरु की होय। हिय से तम को दूर कर, देते ज्ञान - प्रकाश। मांँ - वाणी की हो कृपा, करते सदा प्रयास।। श्री गणेश करना नहीं, बिन गुरु - आज्ञा मान। मन प्रसन्न गुरु का अगर,कार्य सिद्ध तब जान। गुरु पद से गुरु गिरि नहीं, नहीं महेश दिनेश। रघुवर 'पुरुषोत्तम' बने, पाकर गुरु उपदेश। अरुण शुक्ल ‘अर्जुन' प्रयागराज (पूर्णत: मौलिक एवं स्वरचित) . ©अरुण शुक्ल ‘अर्जुन'

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