गर्दिश ए शाम समेटे हुए आ जाओ तुम ! बनके महबूब किसी | हिंदी कविता

"गर्दिश ए शाम समेटे हुए आ जाओ तुम ! बनके महबूब किसी हाल में आ जाओ तुम !! तेरे ना होने से बिखरा हुआ है हर शमां ! कोई शमां मुझको निहारे,आ जाओ तुम !! तुमको रिझाने की अब मैं ख्वाइस नहीं रखती ! छोटी छोटी बातों से , चिल्लाने की ख्वाइश नहीं रखती !! वो तेरे बेपरवाही पर मैं खुदबखुद उखड़ जाती थी ! अब न उखडूंगी आ जाओ तुम !! कितनी जिल्लत कितनी उदासी से दीवारें देखती है मुझको ! घर की चाहूं किवाड़े हर पल टोकती है मुझको ! अब कितना अफसोस लिए तुमको निहारू मैं ! कही उम्मीद न छोड़ दूं जीने की आ जाओ तुम !! ©indresh bahadur"

 गर्दिश ए शाम समेटे हुए आ जाओ तुम !
बनके महबूब किसी हाल में आ जाओ तुम !!
तेरे ना होने से बिखरा हुआ है हर शमां !
कोई शमां मुझको निहारे,आ जाओ तुम !!
तुमको रिझाने की अब मैं ख्वाइस नहीं रखती !
छोटी छोटी बातों से , चिल्लाने की ख्वाइश नहीं रखती !!
वो तेरे बेपरवाही पर मैं खुदबखुद उखड़ जाती थी !
अब न उखडूंगी आ जाओ तुम !!
कितनी जिल्लत कितनी उदासी से दीवारें देखती है मुझको !
घर की चाहूं किवाड़े हर पल टोकती है  मुझको !
अब कितना अफसोस लिए तुमको निहारू मैं !
कही उम्मीद न छोड़ दूं जीने की आ जाओ तुम !!

©indresh bahadur

गर्दिश ए शाम समेटे हुए आ जाओ तुम ! बनके महबूब किसी हाल में आ जाओ तुम !! तेरे ना होने से बिखरा हुआ है हर शमां ! कोई शमां मुझको निहारे,आ जाओ तुम !! तुमको रिझाने की अब मैं ख्वाइस नहीं रखती ! छोटी छोटी बातों से , चिल्लाने की ख्वाइश नहीं रखती !! वो तेरे बेपरवाही पर मैं खुदबखुद उखड़ जाती थी ! अब न उखडूंगी आ जाओ तुम !! कितनी जिल्लत कितनी उदासी से दीवारें देखती है मुझको ! घर की चाहूं किवाड़े हर पल टोकती है मुझको ! अब कितना अफसोस लिए तुमको निहारू मैं ! कही उम्मीद न छोड़ दूं जीने की आ जाओ तुम !! ©indresh bahadur

तेरी राह
बहादुर शाह ज़फ़र इलाहाबादी (मैं शायर बदनाम)

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