.*कामयाबी* वक्त की जरूरतों ने हमें अपने ही आशियाने | हिंदी कविता Video

".*कामयाबी* वक्त की जरूरतों ने हमें अपने ही आशियाने से बिछड़ने पर मजबूर कर दिया। जिसके सुनहरे आंचल में सुकून पलता था उसी मां की ममता से दूर कर दिया॥ तारीफें मिली पर सुकून नहीं, कमाई शोहरत ने पराए शहर में भी मशहूर कर दिया। आ गया तो घर लौटा ही नहीं जरा सी कामयाबी ने हमें दौलत के नशे में चूर कर दिया॥ *संघर्ष* घर से निकले तो दर दर भटके इक आशियाने को खोजने पर मजबूर कर दिया। अपने घर में देर तलक सोता था मैं ,पर नए घर ने जल्द उठने पर मजबूर कर दिया॥ वो जली रोटी वो अधूरी पकी सब्जी खाने पर मजबूर कर दिया! पहले हालातो ने बनाया शिकार मुझे फिर अपनो से भी मुझको दूर कर दिया॥ नौकरी बहुत खोजी पर नौकरी न मिली, दोस्तो ने भी अब मुझसे मुंह फेर लिया। पहले वक्त ने छीन ली खुशियां मेरी, फिर वक्त ने ही हमे न रोने पर मजबूर कर दिया॥ छोटी सी नौकरी की तलाश ने भटकाया बहुत, इक धैर्य ही तो था जो काम आया बहुत। योग्यता तो थी ही नहीं बचपन से बस डिग्रियां कमाई ,पर इन्ही डिग्रियों ने हमें भटकाया बहुत॥ नौकरी मिली भी तो योग्यतानुसार नही थी, काम तो बहुत था पर काम से प्यार नहीं। पर इन घर की मजबूरियों ने ही, हमें अनचाहे रास्ते पर चलाया बहुत॥ मुहब्बत भले न हुई मुझे काम से तो क्या, इस शहर में नाम बनाया बहुत। चंद दिनों की मेहनत मेंरी जिंदगी बना दी, पर मेरे भोले ने मुझे आजमाया बहुत॥ हिम्मत नही हारी फिर भी मैंने बस कर्म किया और कर्म से ही मैंने कमाया बहुत। इक छोटी सी नौकरी की तलाश ने भटकाया बहुत, मेरा धैर्य ही था जो काम आया बहुत॥ ©ranvee_singhh "

.*कामयाबी* वक्त की जरूरतों ने हमें अपने ही आशियाने से बिछड़ने पर मजबूर कर दिया। जिसके सुनहरे आंचल में सुकून पलता था उसी मां की ममता से दूर कर दिया॥ तारीफें मिली पर सुकून नहीं, कमाई शोहरत ने पराए शहर में भी मशहूर कर दिया। आ गया तो घर लौटा ही नहीं जरा सी कामयाबी ने हमें दौलत के नशे में चूर कर दिया॥ *संघर्ष* घर से निकले तो दर दर भटके इक आशियाने को खोजने पर मजबूर कर दिया। अपने घर में देर तलक सोता था मैं ,पर नए घर ने जल्द उठने पर मजबूर कर दिया॥ वो जली रोटी वो अधूरी पकी सब्जी खाने पर मजबूर कर दिया! पहले हालातो ने बनाया शिकार मुझे फिर अपनो से भी मुझको दूर कर दिया॥ नौकरी बहुत खोजी पर नौकरी न मिली, दोस्तो ने भी अब मुझसे मुंह फेर लिया। पहले वक्त ने छीन ली खुशियां मेरी, फिर वक्त ने ही हमे न रोने पर मजबूर कर दिया॥ छोटी सी नौकरी की तलाश ने भटकाया बहुत, इक धैर्य ही तो था जो काम आया बहुत। योग्यता तो थी ही नहीं बचपन से बस डिग्रियां कमाई ,पर इन्ही डिग्रियों ने हमें भटकाया बहुत॥ नौकरी मिली भी तो योग्यतानुसार नही थी, काम तो बहुत था पर काम से प्यार नहीं। पर इन घर की मजबूरियों ने ही, हमें अनचाहे रास्ते पर चलाया बहुत॥ मुहब्बत भले न हुई मुझे काम से तो क्या, इस शहर में नाम बनाया बहुत। चंद दिनों की मेहनत मेंरी जिंदगी बना दी, पर मेरे भोले ने मुझे आजमाया बहुत॥ हिम्मत नही हारी फिर भी मैंने बस कर्म किया और कर्म से ही मैंने कमाया बहुत। इक छोटी सी नौकरी की तलाश ने भटकाया बहुत, मेरा धैर्य ही था जो काम आया बहुत॥ ©ranvee_singhh

#friends .*कामयाबी*
वक्त की जरूरतों ने हमें अपने ही आशियाने से बिछड़ने पर मजबूर कर दिया।
जिसके सुनहरे आंचल में सुकून पलता था उसी मां की ममता से दूर कर दिया॥
तारीफें मिली पर सुकून नहीं, कमाई शोहरत ने पराए शहर में भी मशहूर कर दिया।
आ गया तो घर लौटा ही नहीं जरा सी कामयाबी ने हमें दौलत के नशे में चूर कर दिया॥

*संघर्ष*
घर से निकले तो दर दर भटके इक आशियाने को खोजने पर मजबूर कर दिया।

People who shared love close

More like this

Trending Topic