दो पक्षी . एक मौन बस गया है मन में और चिंतन हैं उन | हिंदी कविता

"दो पक्षी . एक मौन बस गया है मन में और चिंतन हैं उन आंखों में, वो देख रहा है अंदर तक जीवन की गहरी रातों में, कुछ भाव नए मन में उसके कुछ कैद पड़े हैं सीने में, एक पल में कितना कुछ सोच रहा, विचलित है ऐसे जीने में, थी कथा यही एक चिड़िया के, बस संग वो रहना चाहता था , हर दिशा उड़ सके संग उसके, उसके संग बहना चाहता था, थी हवा सभी ही संग उनके और हर टहनी मुस्काती थी, हां हर ज़र्रे, हर कोने में, सूरज की लाली छा जाती थी एक पलक झपकते ही जैसे दिन बदल गया कोई उनके, जिन पंखों से इतना प्रेम किया कोई पंख कतर गया था उनके, कभी गले लगाए याद कोई, कभी खोया हुआ है भीड़ में वो, जो एक चिरैया छोड़ गई खोजे उसको ही नीड़ में वो, कंकड़, काग़ज़, पत्थर, पत्ती, लाए थे संग ढोके रस्सी, अब घर में सब कुछ है उसके, ना है उस चिड़िया की हस्ती । . :– शिवम नाहर ©Shivam Nahar"

 दो पक्षी
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एक मौन बस गया है मन में और चिंतन हैं उन आंखों में,
वो देख रहा है अंदर तक जीवन की गहरी रातों में,
कुछ भाव नए मन में उसके कुछ कैद पड़े हैं सीने में,
एक पल में कितना कुछ सोच रहा, विचलित है ऐसे जीने में,
थी कथा यही एक चिड़िया के, बस संग वो रहना चाहता था ,
हर दिशा उड़ सके संग उसके, उसके संग बहना चाहता था,
थी हवा सभी ही संग उनके और हर टहनी मुस्काती थी,
हां हर ज़र्रे, हर कोने में, सूरज की लाली छा जाती थी
एक पलक झपकते ही जैसे दिन बदल गया कोई उनके,
जिन पंखों से इतना प्रेम किया कोई पंख कतर गया था उनके,
कभी गले लगाए याद कोई, कभी खोया हुआ है भीड़ में वो,
जो एक चिरैया छोड़ गई खोजे उसको ही नीड़ में वो,
कंकड़, काग़ज़, पत्थर, पत्ती, लाए थे संग ढोके रस्सी,
अब घर में सब कुछ है उसके, ना है उस चिड़िया की हस्ती ।
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:– शिवम नाहर

©Shivam Nahar

दो पक्षी . एक मौन बस गया है मन में और चिंतन हैं उन आंखों में, वो देख रहा है अंदर तक जीवन की गहरी रातों में, कुछ भाव नए मन में उसके कुछ कैद पड़े हैं सीने में, एक पल में कितना कुछ सोच रहा, विचलित है ऐसे जीने में, थी कथा यही एक चिड़िया के, बस संग वो रहना चाहता था , हर दिशा उड़ सके संग उसके, उसके संग बहना चाहता था, थी हवा सभी ही संग उनके और हर टहनी मुस्काती थी, हां हर ज़र्रे, हर कोने में, सूरज की लाली छा जाती थी एक पलक झपकते ही जैसे दिन बदल गया कोई उनके, जिन पंखों से इतना प्रेम किया कोई पंख कतर गया था उनके, कभी गले लगाए याद कोई, कभी खोया हुआ है भीड़ में वो, जो एक चिरैया छोड़ गई खोजे उसको ही नीड़ में वो, कंकड़, काग़ज़, पत्थर, पत्ती, लाए थे संग ढोके रस्सी, अब घर में सब कुछ है उसके, ना है उस चिड़िया की हस्ती । . :– शिवम नाहर ©Shivam Nahar

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