221 2121 1221 212 लूटा रहे थे अज़मत तो था कह | हिंदी Shayari

"221 2121 1221 212 लूटा रहे थे अज़मत तो था कहाँ वतन खामोश होके आवाज़ को सुनता था वतन डोली सजी हुई है मेरी इन दिवारो पर शम्मा जलाके घूमता कैसा मेरा वतन आँखों में शर्म लेके खड़ा रहता है जहाँ कहता नहीं हुआ क्या है ये आपका वतन बाबा से क्या कहूँ मैं चली दूर आपसे अर्थी उठाने आयेगा चल के यहां वतन कैसे "जुबैर" कैसे सिला खून से कफ़न बस लाश देखता है तमाशा बना वतन लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️ ©SZUBAIR KHAN KHAN"

 221 2121 1221 212
लूटा  रहे   थे  अज़मत   तो था कहाँ  वतन 
खामोश  होके आवाज़ को सुनता था वतन

डोली  सजी  हुई  है  मेरी  इन   दिवारो  पर 
शम्मा  जलाके   घूमता   कैसा  मेरा  वतन
 
आँखों  में  शर्म  लेके  खड़ा  रहता है जहाँ 
कहता  नहीं हुआ  क्या है ये आपका वतन

बाबा   से  क्या  कहूँ  मैं चली  दूर  आपसे 
अर्थी  उठाने  आयेगा चल  के  यहां वतन 

कैसे  "जुबैर"  कैसे  सिला खून से कफ़न 
बस  लाश देखता  है  तमाशा  बना वतन

लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️

©SZUBAIR KHAN KHAN

221 2121 1221 212 लूटा रहे थे अज़मत तो था कहाँ वतन खामोश होके आवाज़ को सुनता था वतन डोली सजी हुई है मेरी इन दिवारो पर शम्मा जलाके घूमता कैसा मेरा वतन आँखों में शर्म लेके खड़ा रहता है जहाँ कहता नहीं हुआ क्या है ये आपका वतन बाबा से क्या कहूँ मैं चली दूर आपसे अर्थी उठाने आयेगा चल के यहां वतन कैसे "जुबैर" कैसे सिला खून से कफ़न बस लाश देखता है तमाशा बना वतन लेखक - ज़ुबैर खान.......✍️ ©SZUBAIR KHAN KHAN

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