"@ हौंसलों के कंधे झुके हुए थे
समय को यदि सम्मान मिले
हौंसले को एक मकान मिले
पूर्ण गहनता हो यदि शब्दों में
तत्परता हो कर्म की,जीगीषा हो
प्रतिफल पाने की उत्सुकता हो
चंद लम्हों में न घबराने वाले
अपना लक्ष्य साध जाने वालों के
तो कहां मुकाम रूके हुए थे
न हौंसलों के कंधे झुके हुए थे।।
©Shilpa yadav
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