शिव स्मा रहे मुझमें और मै शून्य हो रहा..
उनकी सोच में पागल मेरा मन मनोहरा..
चले कहीं राह पर टहलने को जग में..
आज निकला शिव को ढूंढ़ने और खुद राह है बन रहा।
भक्ति की शाम के तले दिव्य है उनके रोशनी भले..
शिव के नाम पर ही मेरा मन झूम रहा..
शिव स्मा रहे मुझमें और मै शून्य हो रहा..
हर पल खत्म होते ही नए युग का जन्म हो रहा।
व्यक्तित्व बनाने के पीछे सब आज दौड़ रहा..
मै दौड़ रहा वहा जहा व्यक्तित्व है जन्मा..
शून्य से सुशोभित पर जग से है बड़ा..
मै उनकी रोशनी में स्तब्ध हूं खड़ा..
क्योंकि शिव स्मा रहे मुझमें और मै शून्य हो रहा।
© कव्यप्रिंस
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